राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के साझा अध्ययन में हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें बताया गया कि लंबे समय तक ट्रक चलाने वाले ड्राइवरों की सुनने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है। ड्राइवरों का दायां कान लगातार खिड़की की ओर रहने से बहरेपन का शिकार हो रहा है। यह अध्ययन मेडनो के नॉयज एंड हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
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इस अध्ययन में एकेटीयू के अनुपम मेहरोत्रा, राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज बांदा के एसपी शुक्ला, आईईटी के अरविंद के शुक्ला, केजीएमयू के मनीष के मनार और शिवेंद्र के सिंह और चंडीगढ़ विश्वविद्यालय उन्नाव कैंपस की मोनिका मेहरोत्रा शामिल रहीं। इसमें 200 ट्रक ड्राइवरों के कानों की प्योर टोन ऑडिटयोमेट्री जांच की गई। इसमें पाया गया कि करीब 50 फीसदी चालकों में सुनने की क्षमता प्रभावित हो चुकी थी। बाएं कान में सुनने की क्षमता का नुकसान 59.5 फीसदी था तो दाएं कान में यह प्रतिशत 73.5 फीसदी तक था। इसके बावजूद इनमें से ज्यादातर ड्राइवरों को खुद के बहरेपन की जानकारी ही नहीं थी।
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133 डेसीबल से ज्यादा का शोर बनाता है बहरा
डॉ. मनीष कुमार मनार ने बताया कि कान में होने वाले इनर हेयर्स (आंतरिक बाल) जन्म के बाद दोबारा नहीं उगते। शोर के स्तर के आधार पर इनमें कंपन होता है। इस वजह से हर बार का शोर इनको कुछ न कुछ नुकसान पहुंचाता है। चूंकि, ये बाल दोबारा नहीं उगते, इसलिए व्यक्ति के पूरे जीवनकाल में शोर झेलने का एक स्तर होता है। 121 डेसीबल प्रति घंटे का शोर व्यक्ति आसानी से झेल सकता है। इससे उसकी सुनने की क्षमता को कोई नुकसान नहीं पहुंचता, लेकिन 133 डेसीबल शोर प्रति घंटा झेलने पर व्यक्ति के सौ फीसदी बहरे होने की आशंका होती है।
ट्रक ड्राइवरों के सुनने की क्षमता प्रभावित होने के पीछे मुख्य वजह यातायात का शोर है। हालांकि, इसके साथ ही अन्य कारण भी जिम्मेदार हैं। इनमें कम नींद, शराब का सेवन और 40 साल से ज्यादा उम्र होना मुख्य वजह निकलकर आई है।