Samwad 2025 Day 2 Live: कब लगा कि भारत के लिए खेलना अब दूर नहीं? वो कौन सी पारियां थीं? रैना ने दिया ये जवाब

06:33 PM, 18-Apr-2025

सवालः ये कब लगा कि भारत के लिए खेलना अब दूर नहीं है? वो कौन सी पारियां थीं?

रैनाः जैसा कि मैंने कहा एयर इंडिया से मैं कंगाली खेला, बॉम्बे में एक ट्रॉफी मैच खेला। मैंने तब बहुत कुछ सीखा जब एयर इंडिया से मुझे स्कॉलरशिप मिली थी। मेरा सबसे पहला सपना गाजियाबाद के लिए खेलना था। फिर यूपी का प्रतिनिधित्व करना। मुझे याद है 2005-06 में हमने केडी बाबू सिंह स्टेडियम में रणजी ट्रॉफी जीती थी। तब टीम में पीयूष चावला, प्रवीण कुमार, आरपी सिंह थे। बहुत बड़े-बड़े नाम थे उस टाइम पर। सच कहूं तो मुझे पता नहीं था कि मैं देश के लिए खेलूंगा या नहीं खेलूंगा। मुझे पहले उत्तर प्रदेश अंडर 14 टीम की कप्तानी मिली, फिर अंडर 16 की और फिर अंडर-17 और अंडर 19 की कप्तानी मिली। मैं एक डिसिप्लिन रोड पर था। अच्छा फोकस करना, ऊपर वाले का आशीर्वाद, मां पाप की दुआएं तो अलग जुनून था खेलने का। मुझे लगता है कि किसी को अगर क्रिकेटर बनना है तो कड़ी मेहनत से ज्यादा मां पापा का आशीर्वाद होना ज्यादा जरूरी है।

06:26 PM, 18-Apr-2025

सवालः लखनऊ में आप होस्टल में रहे। यहां से जुड़ी सबसे खूबसूरत याद कौन सी थी? आप होस्टल छोड़कर भी चले गए थे। वह क्या वजह थी?

रैनाः तब बहुत रैगिंग होता थी। किसी भी इंस्टीट्यूट में किसी भी स्पोर्ट्स के कल्चर में रैगिंग नहीं होनी चाहिए। वो मुश्किल था, क्योंकि कभी रहे नहीं परिवार से दूर, मम्मी पापा से दूर तो मेरे लिए मुश्किल था। तो जब मैं घर गया तो पापा ने कहा कि आपने ही कहा था कि आपका सपना है भारत के लिए खेलना, लेकिन अब आप वापस आ गए। तो मुझे थोड़ा निराशा हुई कि परिवार ने मुझे इतना समर्थन दिया और फिर मैंने वापसी की। जैसे लक्ष्य मूवी में ऋतिक रोशन ने वापसी की, मैंने भी ठीक वैसी ही वापसी की।

06:22 PM, 18-Apr-2025

सवालः मम्मी ने बेलन से पीटा था, उस किस्से के बारे में कुछ बताएंगे?

रैनाः नहीं-नहीं मां थपकी से मारती थीं।

सवालः ये जो सपना था भारत के लिए खेलने का, ये सबसे पहले किसने देखा? युवा सुरेश रैना ने देखा, पिता ने देखा या मां ने देखा? 

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रैनाः मेरे परिवार ने मेरा बहुत समर्थन किया। मैं गाजियाबाद कभी नहीं आया था। मैं मुरादनगर से मेरठ गया। मेरठ से ही मेरा चयन हुआ था। मुरादनगर से फिर मैं लखनऊ गया जहां चार साल रहा। मेरा जीवन बहुत कठिन था। मैं सबसे  छोटा था घर में। मेरे परिवार ने कहा कि खेलना है तो खेलो लेकिन पढ़ाई बहुत जरूरी है। मैंने लखनऊ से 10वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी की। फिर लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। परिवार ने कहा कि पढ़ाई करोगे तो किसी भी फील्ड में आगे बढ़ोगे। फिस होस्टल आए। लखनऊ से अंडर 16 खेलने को मिला, फिर अंडर 14 खेलने को मिला। तो यह सफर चलता रहा। मेरे यहां पर बहुत कोच हैं और बहुत ने मेरे लिए दुआ की। लेकिन सबसे बड़ा हाथ एयर इंडिया का है। मुझे याद है 1998 में 10 हजार रुपये मिलते थे स्कॉलरशिप और होस्टल की फीस 10 हजार रुपये थी साल की। मैं अपने परिवार पर कभी निर्भर नहीं रहा। लेकिन मुझे जो अनुभव मिला, देश के लिए खेलकर, उत्तर प्रदेश के लिए खेलकर और गाजियाबाद के लिए खेलकर। मुझे लगता है कि सपना देखना जरूरी होता है, लेकिन परिवार का समर्थन मिलना भी बहुत जरूरी है आगे बढ़ने के लिए।

06:20 PM, 18-Apr-2025

सुरेश रैना
– फोटो : अमर उजाला

सवालः रात भर घर नहीं पहुंचे थे? क्या किस्सा था वो?

रैनाः अमर उजाला और लखनऊ में बहुत साल रहे हैं। बहुत प्यार मिला है। तालीम सीखी है लखनऊ यूनिवर्सिटी से। वो किस्सा बहुत पुराना था। दो दिन का मैच था। स्कूल में छुट्टी होती थी। ऐसा बच्चों को नहीं करना चाहिए, क्योंकि पापा ने बहुत पिटाई की थी मेरी। तब फोन नहीं होता था। सारे मैच हो चुके थे, सिर्फ फाइनल बचा था। जब मैं ट्रॉफी लेकर घर पहुंचा तो पापा ने पूछा कि बता कर क्यों नहीं जाता। तो मैंने कहा कि फोन किया था फोन किसी ने नहीं उठाया। वो जुनून अलग था, उत्तर प्रदेश के लिए खेलने का, देश के लिए खेलने का तो मैंने सोचा कुछ तो अलग करना पड़ेगा देश का नाम रोशन करना है तो।

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06:03 PM, 18-Apr-2025

अमर उजाला संवाद के मंच पर सुरेश रैना

अमर उजाला संवाद के मंच पर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व खिलाड़ी और उद्यमी सुरेश रैना पहुंच गए हैं। वह कामयाबी की कहानियां सत्र में अपने विचार रखेंगे। 

06:01 PM, 18-Apr-2025

आप अपने आपको किस परंपरा के गीतों में सबसे ज्यादा जुड़ा पाते हैं?

इसके जवाब में मनोज मुंतशिर ने कहा कि 18 मार्च 1999 वह तारीख थी, जब मैंने पुष्पक एक्सप्रेस से 362 रुपये का टिकट लेकर ट्रेन पकड़ी थी। तब मेरे लिए फिल्मी गीतों का मतलब इतना था कि साहित्य और लोकप्रियता के बीच क्या कोई स्वीट पॉइंट है, ऐसी जगह जहां लिटरेचर आम आदमी से मिल जाए। मुझे वह फिल्मी गीतों में दिखाई दिया।

गीतकार अज्ञेय के विरुद्ध कोई खड़ा हो सकता है: मनोज मुंतशिर

क्या दुनिया में कोई गीतकार अज्ञेय के विरुद्ध खड़ा है। दिनकर के खिलाफ खड़ा है? इन्हीं से तो हम सीखते हैं। मगर, कई बार ऐसा होता है कि जो साहित्य के ठेकेदार हैं वो ये नहीं कहते कि इसने बड़ी-बड़ी बातें आसान भाषा में कही हैं। एक बात बताऊं, एक फिल्मों के बड़े प्रोड्यूसर थे। वो अपनी फिल्मों के गाने लिखवाने काका हाथरसी के पास पहुंचे। उन्हें बताया कि हमारी जो हीरोइन है उसका ब्रेकअप हो गया है। अपने छज्जे पर बैठी है। उसे देखकर लग रहा है कि चिंता में अपनी जान दे देगी। कुछ लिख दीजिए

गोरी बैठी छत पर कूदन को तैयार

नीचे पक्का फर्श है भली करे करतार

भली करे करतार न कोई दे दे धक्का

ऊपर भारी नार है, नीचे पतले कक्का

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05:54 PM, 18-Apr-2025

लेखन की जब बात आती है, कोई लिखता क्यों है? यह प्रेरणा कहां से आती है?

जवाब में कवि मनोज मुंतशिर ने कहा कि लिखने की एक वजह होनी चाहिए कि आपके अंदर कुछ उबल रहा है, तभी लिखना चाहिए। नहीं तो बेकार है। तुलसीदास ने कहा, ‘मुझसे तो राम ने लिखवाया, वह मैंने लिखा’। इसलिए ईश्वर जब लिखवाए तब लिखो। कोई साहिर बनकर वैराग्य नहीं लिख सकता। भगवान डिक्टेशन न दे तो कोई नहीं लिख सकता। अगर परमात्मा आपका हाथ पकड़कर न लिखवाए तो कोई शेक्सपीयर नहीं लिख सकता।

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05:50 PM, 18-Apr-2025

आदिपुरुष तक सिर्फ मैंने फिल्मों में गाने लिखे: मनोज मुंतशिर

आदिपुरुष तक सिर्फ मैं फिल्मों में गाने लिख रहा था। बड़ी-बड़ी फिल्मों के गाने ही लिखता था। आदिपुरुष के बाद मैंने 1100 रुपये में मैंने भजन लिखे। मेरे सामने हमेशा दो रास्ते थे कि आप अपनी लोकप्रियता को कैसे भुनाएं। आप इसे निजी फायदे के लिए भी भुना सकते हैं और अपने सनातन के लिए भी भुना सकते हैं। मैं अपनी लोकप्रियता को अपने सनातन के लिए भुना रहा हूं। जयश्रीराम।

05:49 PM, 18-Apr-2025

मुश्किल में मैं भगवान श्रीराम की शरण में गया: कवि मनोज मुंतशिर

मनोज मुंतशिर ने कहा, हर कोई मुश्किल में राम की शरण में जाता है। मैं भी मुश्किल में राम की शरण में गया। उस वक्त मुझे कोई सुख नहीं मिल रहा था। तब मुझे लगा कि राम के चरणों में ही अपने शब्द पुष्प अर्पित कर पाऊं। तो मुझे भगवान श्रीराम ने वाणी की शक्ति दी थी। शब्दों की शक्ति दी तो मैंने उन्हें अर्पित कर दी। मैंने सोचा निरंतर उन्हीं के लिए लिखूंगा।

05:40 PM, 18-Apr-2025

जितनी बार लोग मुझसे नाराज होंगे, मैं सवाल पूछने नहीं सिर्फ माफी मांगने आऊंगा: मनोज मुंतशिर

चर्चा के दौरान मनोज मुंतशिर ने कहा कि मेरे घर के बगल की दुकान का पनवाड़ी भी मुझे नहीं पहचानता था कि मैं कौन हूं। तो जितनी बार लोग मुझसे नाराज होंगे, मैं सवाल पूछने नहीं, सिर्फ माफी मांगने आऊंगा। लोगों को नाराजगी का हक है।

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